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शनिवार, जनवरी 7

प्रेम स्वप्न बन कर पलता है



प्रेम स्वप्न बन कर पलता है

एक बार फिर देखें मुड़कर

कितनी राह चले आये हम,

कब थामा था हाथ हाथ में 

कितनी चाह भरे भीतर मन !


छोटा सा संसार  बसाया

कितने ही परिवर्तन देखे,

कितने सफर, मंजिलें कितनी

कितने ही अभिनन्दन देखे !


बरसों का है साथ अनोखा

लगे आज भी नया-नया सा,

है अनंत जीवन यह अद्भुत 

राज न कोई जाने जिसका !


अभी सफर यह शुरू हुआ है 

अब तलक भूमिका ही बाँधी ,

जीवन नित नव द्वार खोलता

व्यर्थ यहाँ सीमा बाँधी थी !


पाया ही पाया है अब तक 

प्रीत लुटाने की रुत आयी,

जगी ऊर्जा सुप्त पड़ी, कुछ 

कर दिखलाने की रुत आयी !


हर पल कोई साया बनकर 

सदा साथ ही जो चलता है,

प्रेम हमारा अनुपम रक्षक

प्रेम स्वप्न बन कर पलता है !


उन सभी को समर्पित जिनके विवाह की वर्षगाँठ इस वर्ष है


रविवार, अप्रैल 19

साया बनकर साथ सदा है

साया बनकर साथ सदा है

 

कोई अपनों से भी अपना 
निशदिन रहता संग हमारे,
मन जिसको भुला-भुला देता 
जीवन की आपाधापी में !

कोमल परस, पुकार मधुर सी 
अंतर पर अधिकार जताता,
नजर फेर लें घिरे मोह में 
प्रीत सिंधु सनेह बरसाता !

साया बनकर साथ सदा है 
नेह सँदेसे भेजे प्रतिपल,
विरहन प्यास जगाये उर में 
बजती जैसे मधुरिम कलकल  ! 

जगो ! वसन्त जगाने आया 
कोकिल गूंज गूंजती वन-वन,
भरे सुवास पुष्पदल महकें 
मदमाता सा प्रातः समीरण !

जागें नैना मन भी जागे
चेतनता कण-कण से फूटे,
मेधा जागे, स्वर प्रज्ञा के 
हर प्रमाद अंतर से हर ले ! 

अखिल विश्व का स्वामी खुद ही 
रुनझुन स्वर से प्रकट हो रहा,
भू से लेकर अंतरिक्ष तक
कैसा अद्भुत नाद गूँजता ! 

कान लगाओ, सुनो जागकर 
वसुधा में अंकुर गाते हैं,
सागर की उत्ताल तरंगे 
नदियों के भंवर भाते हैं !