जीवन पल-पल यही सिखाये
छोटी-छोटी बातों से जब,
दीवाना यह दिल अकुलाया,
उलझी अनगढ़ी भाषा को न
बूझ कोई स्वजन भी पाया !
इधर टटोला उधर निहारा,
समाधान इसका कब पाया,
आतुर हो फिर देखा भीतर
जहाँ किसी को हँसते पाया !
जिसका होना ही सत्य यहाँ ,
शेष यहाँ सारी भ्रम माया ,
जीवन पल-पल यही सिखाये,
व्यर्थ ह्रदय सपने बुन आया !
जरा ठहर जब जाँचा परखा,
सारे सपने निकले झूठे,
जिनमें कोई सार नहीं था,
लगे ह्रदय को वही अनूठे !
स्वयं ही उर कामना गढ़ता,
रंग अनोखे उसमें भरता,
रही अपूर्ण यदि किसी कारण
व्यर्थ स्वयं को घायल करता !
कुछ बन जाये , कुछ यश पाये
सुख, सुनाम कुछ यहाँ कमाये
इसी तरह के और स्वप्न भी,
भाग्य अतीव महान बनाये !
जब भी भीतर जाकर देखा,
सोया मिला क्षीरसागर में,
हर्षित,पुलकित पाया उसको
सुखमय परम योगनिद्रा में !
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार...जीवन के सच को भी पिरो दिया है बहुत बहुत बधाई...
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