मैं कौन हूँ
एक चेतना ! चिंगारी हूँ
एक ऊर्जा सदा बहे जो,
सत्य एक धर रूप हजारों
परम सत्य के संग रहे जो !
अविरत गतिमय ज्योतिपुंज हूँ
निर्बाधित संगीत अनोखा,
सहज प्रेम की निर्मल धारा
पावनी शांति पुहुप सरीखा !
चट्टानों सा अडिग धैर्य हूँ
कल-कल मर्मर ध्वनि अति कोमल,
मुक्त हास्य नव शिशु अधरों का
श्रद्धा परम अटूट निराली !
अन्तरिक्ष भी शरमा जाये
ऐसी ऊँची इक उड़ान हूँ,
पल में नापे ब्रह्मांडों को
त्वरा युक्त इक महायान हूँ !
एक शाश्वत सतत् प्रवाह जो
शिखरों चढ़ा घाटियों उतरा,
पाया है समतल जिसने अब
सहज रूप है जिसका बिखरा !
अनिता निहालानी
२७ सितम्बर २०१०
so beautiful.... excellent... superb...
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
जवाब देंहटाएंसंजय जी ,कविता पढ़कर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिये शुक्रिया !
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