विश्वकर्मा पूजा
पूर्णता से उपजी पूजा, पावन इस जैसा ना दूजा
विश्वकर्मा सृष्टि रचेता, कण-कण में बसा प्रणेता
सितम्बर के चरण पड़ते ही
शुरू हो जाती है हलचल
पहले-पहल धीरे से फिर
जोरों से मचती है खलबल
यूँ तो हर बरस की है यही कहानी
पर लगे नित नयी सदा सुहानी!
मूर्ति कौन लाएगा ?
थाल पूजा का कौन सजायेगा ?
फूलों-हारों का जिम्मा कौन उठाएगा ?
से लेकर भोजन की तैयारी,
करते सभी बारी-बारी
सजी फिर बंदनवार
लगायी सबने पुकार
उपकरणों की करना, हे देव !
वर्ष भर सार-संभार
लगा, मूर्ति मुस्कायी
पुजारी की आँख भर आयी
झुक गया हृदय
मस्तक के साथ
गुपचुप हो गयी बात
उत्सव, उसको भी तो भाए
जैसे हम, वह भी तो
वर्ष भर रहे आस लगाये
कब मुझ तक आयेगा मानव
मोद भरा तृप्त हुआ झूमे गायेगा !
पूजा पावन अमृत घट सी, पूजा पावन कल्प वट सी
पूजा प्रेम का दूजा नाम, प्रेम ही पूजा का पैगाम !
अनिता निहालानी
१६ सितम्बर २०१०
17 september ke uplakshya me achhi prayas hain.
जवाब देंहटाएंVisit : http://biharicomment.blogspot.com
Thnx
देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा को शत शत नमन| बहुत सुन्दर कविता|
जवाब देंहटाएंब्रह्माण्ड
विश्वकर्मा पूजा का महत्व बताती बहुत ही सुन्दर कविता। आभार! -: VISIT MY BLOG :- जिसको तुम अपना कहते हो...........कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित है। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना...बधाई.
जवाब देंहटाएं्विश्वकर्मा भगवान को नमन करते हुवे आपको विषय प्रधान कविता के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंआप सभी का धन्यवाद एवं हृदय से आभार!
जवाब देंहटाएंager aapke pas aur bhi shree Vishwakarma g se
जवाब देंहटाएंsambandhit kavita hai or ager aap use janhit me print karna chahe ho sampark kare : anilsharmabsw@gmail.com
thanks
सुंदर।
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