इक दिन रब बंदे से बोला 
क्यों शंकित है ? क्यों पीड़ित है 
हृदय तुम्हारा क्यों कम्पित है ?
साथी हैं हम जनम जनम के 
सुख के, दुःख के, हर एक पल के !
किसे ढूंढते नयन तुम्हारे 
कैसा दर्द छिपाए दिल में ? 
कदम कदम सँग चलना हमको 
हर मोड़ पर मिलना हमको ! 
चलो भुला दो बीती बातें 
चलो मिटा दो दुख फरियादें ! 
हाथ लिये हाथों में अपने 
पूर्ण करेंगे सारे सपने ! 
साथ निभाने का है वादा 
तुमने न कुछ माँगा ज्यादा ! 
जो चाहो वह सदा तुम्हारा 
साँझा है यह जीवन प्यारा ! 
दर्द लिये अनजाने में जो 
उन्हें भुला दो, अब तो हँस दो !
बंदा बोला फिर यह रब से 
तुमसे ही अपना जीवन है 
तुमसे ही यह तन, मन, धन है ! 
तुम ही हो सर्वस्व हमारे 
तुमसे न कोई भी प्यारे! 
तुमने ही जीना सिखलाया 
तुमसे कितना सम्बल पाया ! 
हर उलझन को तुम सुलझाते 
अपना कर्तव्य निभाते ! 
तुमसे ही यह जग चलता है 
तुम से ही जीवन सजता है !
इस सृष्टि को तुमने चाहा 
सुंदर सा इक ग्रह बनाया !
कितने तेजस्वी, मेधावी 
कितने प्रखर, कितने बलशाली !
तुमने कितने उपहारों से 
सोने चांदी के तारों से !
भर दी है यह दुनिया सारी 
जीवन की सुंदर फुलवारी ! 
साथी ! तुम सँग जीवन प्यारा 
तुम न हो सूना जग सारा !
कैसे तुमको भूल गए हम 
खुद से ही हो दूर गए हम ! 
तुम आओगे तकती ऑंखें 
सपनों से भर दोगे पाँखें! 
अनिता निहालानी 
२२ दिसम्बर २०१०
साथी ! तुम सँग जीवन प्यारा
जवाब देंहटाएंतुम न हो सूना जग सारा !
एक -एक पंक्ति खुबसूरत व प्रभावी है . आइना दिखाती हुई रचना ..आपको बारम्बार बधाई ..
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर! बेहतरीन, आपकी रचनाओं में आध्यात्मिकता झलकती है!
जवाब देंहटाएंरब और बन्दे के बीच की काव्यमय बातचीत में नयापन है
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण कविता.
जवाब देंहटाएंरब का ही तो सहारा है,उसी से जीवन है और उसी के लिये जीवन है उसके बिन यह दिल धड़के या ना धड़के,क्या फर्क पड़ता है.फिर जीवन नहीं है बस घड़ी की टिक टिक है.
तुमने ही जीना सिखलाया
जवाब देंहटाएंतुमसे कितना सम्बल पाया !
परम पिता परमेश्वर जी की स्तुति के लिए
बहुत ही अनुपम और अद्वतीय रचनावली
अभिवादन स्वीकारें .