कोई है
सुनो ! कोई है
जो प्रतिपल तुम्हारे साथ है
तुम्हें दुलराता हुआ
सहलाता हुआ
आश्वस्त करता हुआ !
कोई है
जो छा जाना चाहता है
तुम्हारी पलकों में प्यार बनकर
तुम्हारे अधरों पर मुस्कान बनकर
तुम्हारे अंतर में सुगंध बनकर फूटना चाहता है !
कोई है
थमो, दो पल तो रुको
उसे अपना मीत बनाओ
खिलखिलाते झरनों की हँसी बनकर जो घुमड़ रहा है
तुम्हारे भीतर उजागर होने दो उसे !
कोई है
जो थामता है तुम्हारा हाथ हर क्षण
वह अपने आप से भी नितांत अपना
बचाता है अंधेरों से ज्योति बन के समाया है तुम्हारे भीतर
उसे पहचानो
सुनो ! कोई है
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी प्रस्तुति ||
शुभ विजया ||
सही कहा ..कोई है ..अच्छी लगी रचना शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंबस उसी कोई को ही तो जानना है उसी के पीछे उम्र भर दौडता है कस्तूरी हिरण की तरह मगर अपने अन्दर ही है वो यही नही जान पाता।
जवाब देंहटाएंहाँ,उस कोई में ही तो सब कुछ है,उसके बिना तो पूरी दुनिया बेमानी है.
जवाब देंहटाएंकोई है
जवाब देंहटाएंजो थामता है तुम्हारा हाथ हर क्षण
वह अपने आप से भी नितांत अपना
बचाता है अंधेरों से ज्योति बन के समाया है तुम्हारे भीतर
उसे पहचानो
सुनो ! कोई है
वाह......सुन्दर |
ऐसे ‘कोई’ को लपक कर हाथ थाम लेना चाहिए। बहुत कम ही कोई मिलता है आत्मीयता के साथ।
जवाब देंहटाएंMujhe kuchh samajh nahi aa raha ki kya comment karun ?
जवाब देंहटाएंनीरज जी, जब कुछ समझ न आये वही पल विश्राम का होता है.. मन रुक गया बुद्धि चकरा कर थम गयी और तब भीतर जो खालीपन है उसमें ही टिक जाएँ...ध्यान की झलक मिल सकती है..
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