बस जीना भर है
मेह बरस ही रहा है
बस भीगना भर है
सूरज उगा ही है
नजर से देखना भर है
शमा जली है
बस बैठना भर है
धारा बह रही है
अंजुरी भर ओक से पीना भर है
उतार फेंकें उदासी की चादर
कि कोई आया है
परों को तोलने का
आज मौका पाया है...
उतर फेंकें उदासी की चादर
जवाब देंहटाएंकि कोई आया है
परों को तोलने का
आज मौका पाया है...वाह: बहुत खुबसूरत भाव संजोए है..सुन्दर प्रस्तुति...अनिता जी
वाह सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमौका पाया है उसका भरपूर उपयोग भी कर लेना है..एक अलग सी अनुभूति होती है..
जवाब देंहटाएंman bhigoti rachna ....
जवाब देंहटाएंabhar ..!!
इस ज़िनदगी के जीने की यह कविता मन को मोह गई।
जवाब देंहटाएं"सूरज उगा ही है बस देखना भर है " सुन्दर अभिव्यक्ति |बहुत भावपूर्ण रचना है आशा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अनीता जी...
जवाब देंहटाएंउतार फेंकें उदासी की चादर
कि कोई आया है
परों को तोलने का
आज मौका पाया है...
भावभीनी रचना ....
सादर.
मनोज कुमार ने आपकी पोस्ट " बस जीना भर है " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंइस ज़िनदगी के जीने की यह कविता मन को मोह गई।
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मनोज कुमार द्वारा मन पाए विश्राम जहाँ के लिए 17 मई 2012 11:00 pm को पोस्ट किया गया
प्रभाव शाली रचना के लिए आपका आभार...
जवाब देंहटाएंअप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !
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