पले वहाँ विश्वास का मोती
संभल संभल के चलने वाला
गिरने से तो बच जायेगा,
गिरकर भी जो संभल गया
उसका गौरव न पायेगा !
पूर्ण बने कोई इस जग में
इसकी नहीं जरूरत उसको,
हृदय ग्राही, निष्ठावान हो
मंजिल की चाहत हो जिसको !
दोराहे हर मोड़ मिलेंगे
मुँह बाएं है खड़ी चुनौती,
हंसकर झेले तब जो उसको
पले वहाँ विश्वास का मोती !
नहीं परीक्षा लेता रब भी
जिसके कदमों में न बल है,
ठोंक-पीट कर उसको देखे
जिसमें बढ़ने का सम्बल है !
जिसको ऊपर ही जाना है
मुड़-मुड़ कर न पीछे देखे,
इस उलझन में गिर सकता वह
जिसकी राह में सुंदर लेखे !
दोराहे हर मोड़ मिलेंगे
जवाब देंहटाएंमुँह बाएं है खड़ी चुनौती,
हंसकर झेले तब जो उसको
पले वहाँ विश्वास का मोती !
वाह!
आभार !
हटाएंप्रेरणा देने वाली सारगर्भित कविता .
जवाब देंहटाएंनहीं परीक्षा लेता रब भी
जिसके कदमों में न बल है,
ठोंक-पीट कर उसको देखे
जिसमें बढ़ने का सम्बल है ! क्या खूब कहा है.
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंसच है ईश्वर भी उसी की परीक्षा लेता है जो इस लायक हो...
सादर.
वह दयालु जो है...
हटाएंबहुत सुन्दर सोच
जवाब देंहटाएंवन्दना जी, आभार!
हटाएंगूढ़ ज्ञान की बातें सहज-सरल शब्दों में मन के भीतर समाती हैं।
जवाब देंहटाएंनहीं परीक्षा लेता रब भी
जवाब देंहटाएंजिसके कदमों में न बल है,
ठोंक-पीट कर उसको देखे
जिसमें बढ़ने का सम्बल है !
सही कहा.....!!
सुंदर कविता....!!!
मनोज कुमार ने आपकी पोस्ट " पले वहाँ विश्वास का मोती " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंगूढ़ ज्ञान की बातें सहज-सरल शब्दों में मन के भीतर समाती हैं।
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मनोज कुमार द्वारा मन पाए विश्राम जहाँ के लिए 15 मई 2012 4:47 pm को पोस्ट किया गया