गुरुवार, मई 17

बस जीना भर है



बस जीना भर है

मेह बरस ही रहा है
बस भीगना भर है
सूरज उगा ही है
नजर से देखना भर है
शमा जली है
बस बैठना भर है
धारा बह रही है
अंजुरी भर ओक से पीना भर है

उतार फेंकें उदासी की चादर
कि कोई आया है
परों को तोलने का
आज मौका पाया है...

10 टिप्‍पणियां:

  1. उतर फेंकें उदासी की चादर
    कि कोई आया है
    परों को तोलने का
    आज मौका पाया है...वाह: बहुत खुबसूरत भाव संजोए है..सुन्दर प्रस्तुति...अनिता जी

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  2. मौका पाया है उसका भरपूर उपयोग भी कर लेना है..एक अलग सी अनुभूति होती है..

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  3. इस ज़िनदगी के जीने की यह कविता मन को मोह गई।

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  4. "सूरज उगा ही है बस देखना भर है " सुन्दर अभिव्यक्ति |बहुत भावपूर्ण रचना है आशा

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  5. बहुत सुंदर अनीता जी...

    उतार फेंकें उदासी की चादर
    कि कोई आया है
    परों को तोलने का
    आज मौका पाया है...
    भावभीनी रचना ....

    सादर.

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  6. मनोज कुमार ने आपकी पोस्ट " बस जीना भर है " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    इस ज़िनदगी के जीने की यह कविता मन को मोह गई।

    इस ब्लॉग के लिए टिप्पणियों को मॉडरेट करें.

    मनोज कुमार द्वारा मन पाए विश्राम जहाँ के लिए 17 मई 2012 11:00 pm को पोस्ट किया गया

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  7. प्रभाव शाली रचना के लिए आपका आभार...

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  8. अप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !

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