ओढ़ते तरुवर नूतन गात
उड़ा मकरंद, बहा आनंद
गाया प्रकृति ने नव छंद
पड़ी ढोलक पर प्यारी थाप
हर कहीं रंगों वाली छाप
मधुर सी बहने लगी बयार
मदिर मौसम ने घोला प्यार
छूट जाते यूँ पीले पात
ओढ़ते तरुवर नूतन गात
विटप हँस दिए गाल कर लाल
खिली सरसों कर पीले हाथ
नासिका पुट महकाए बौर
गमक छाई ज्यों चारों ओर
पुलक भर फूला ढाक, पलाश
थमी तितली की मृदु तलाश
दूर से आती है अनुगूँज
बजी पायल, न फागुन दूर
बसंती बाना ऋतु मदमस्त
चढ़ा मधुमास सभी अलमस्त
देवी वागीशा वन्दित
धूप, मंत्रो से हुईं अर्चित
दिगों तक उड़ा मधुर उच्छ्वास
झूमती मीठी मधुर सुवास
सुहाने दिन चन्दन सी धूप
फिजां पर कैसा रूप अनूप
लगी हल्दी सरसों के अंग
सिंदूरी भाल पलाश के संग
फैली गली-गली यह बात
सजी भू, आया है ऋतुराज
बसंत ऋतु के आगमन सी ताजातरीन रचना.... बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसंजय जी, स्वागत है आपका..शुक्रिया !
हटाएंअप्रतिम ....अद्भुत ...बहुत ही सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएंहृदय प्रफुल्लित हो गया इसे पढ़कर ....!!
बधाई अनीता जी ॥
बहुत सुंदर रचना .... गमक गया मन ।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, वसंत का जादू ऐसा ही है..
हटाएंऋतुराज वसंत का स्वागत करती सुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंइमरान, शुक्रिया..
हटाएंइस मदिर-मदिर मौसम का आलम ही ऐसा है .
जवाब देंहटाएंअमृता जी, सही कहा है आपने..
हटाएंमदनोत्सव की पूर्व संध्या वेला में उत्कृष्ट कोटि का प्रेम गीत .प्रकृति नटी भी गाती है प्रेम गीत .
जवाब देंहटाएंवीरू भाई, प्रकृति सचमुच प्रेम मयी है..आभार!
हटाएंऋतुराज वसंत का सुन्दर छबि खींचा आपने
जवाब देंहटाएंLatest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
कालीपद जी, स्वागत व आभार !
हटाएंशालिनी जी, बहुत-बहुत आभार !
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