शुक्रवार, जून 7

एक रास्ता है मन

एक रास्ता है मन

मन मानो भूमि का एक टुकड़ा है
उगाने हैं जहाँ उपवन फूलों भरे
जहाँ बिन उगाये उग आते हैं
खर-पतवार
हो सकता है अनजाने में गिराए हों बीज उनके भी
समय की अंतहीन धारा में  
जिस पर पनपे-उजड़े अनंत बार
कितने पादप कितने वृक्ष
पर अब जब कि पता चल गया है
पता उस खुशबू का
जिसकी जड़ छिपी है मन की ही माटी में कहीं गहरे
तो उपवन सजाना है
उसी को खिलाना है

मन मानो एक मदारी है
जब तक हम उसकी हरकतों पर बजाते हैं तालियाँ
तब तक दिखाता रहता है वह खेल
जिसे मिटाना ही है
उसे बड़ा क्यों करना
जिससे मुक्त होना ही है
उससे मोह क्यों लगाना
जिससे गुजरना भर है
क्यों बनाना उस पथ पर घर
एक रास्ता है मन
जो पार करना है
जब खो जाते हैं सारे अनुभव
तब कोई देखने वाला भी नहीं बचता
नाटक बंद होते ही
घर लौटना होगा
घर आना ही होगा हरेक को
एक यात्रा है मन
जो घर तक ले जाएगी....

19 टिप्‍पणियां:

  1. जहाँ बिन उगाये उग आते हैं

    खर-पतवार

    हो सकता है अनजाने में गिराए हों बीज उनके
    भी

    समय की अंतहीन धारा में

    फूल खिलाने के लिए प्रयास ज़रूरी है । सुंदर रचना

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  2. बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति ..मन को छू गयी .आभार . चमन से हमारे जाने के बाद . साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN

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  3. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज (शुक्रवार, ७ जून, २०१३) के ब्लॉग बुलेटिन - घुंघरू पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  5. मन ही देवता ,मन ही ईश्वर मन से बड़ा न कोय ,
    मन उजियारा जब-जब जागे ,जग उजियारा होय!

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  6. मन के बगिया में........कब कौन सा फुल खिले .....पता नहीं !
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
    latest post मंत्री बनू मैं

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  7. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 09/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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  8. नाटक बंद होते ही
    घर लौटना होगा
    घर आना ही होगा हरेक को
    एक यात्रा है मन
    जो घर तक ले जाएगी....

    ....बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...आभार

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  9. हो सकता है अनजाने में गिराए हों बीज उनके भी
    समय की अंतहीन धारा में
    जिस पर पनपे-उजड़े अनंत बार
    कितने पादप कितने वृक्ष
    पर अब जब कि पता चल गया है
    पता उस खुशबू का
    जिसकी जड़ छिपी है मन की ही माटी में कहीं गहरे
    तो उपवन सजाना है
    उसी को खिलाना है

    बहुत सुन्दर भाव

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  10. बहुत सुंदर ...जिस राह रुकना नहीं ..वहाँ घर क्यूँ बनाना ......एक बेतरीन सन्देश ..

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  11. मन में आये खर पतवार को भी उखाड फेकना जरुरी है.

    सुंदर कविता उम्दा प्रस्तुति.

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  12. सुंदर रचना के लिए बधाई !

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  13. आप सभी सुधी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया..

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