झर जायेगा पतझड़ सारा
सच को अनदेखा हम करते
फिर उखड़े उखड़े से रहते,
वही देखते जो मन चाहे
वरना नयन मुंदे ही रहते !
सच को जो सच ही मानता
बन द्रष्टा मन लीला जाने,
वही मुक्त होकर रह पाता
पल-पल उसके बने सुहाने !
झर जायेगा पतझड़ सारा
नूतनता हर पल झलकेगी,
कोई भर देगा अमृत भी
गागर जब पूरी निखरेगी !
प्रकृति प्रेम लुटाना जाने
दीवाने हम खुद में खोये
नजर उठाकर नहीं निहारें
चंदा तारे नभ में सोये !
छोटे-छोटे इम्तहान से
पल भर में ही घबरा जाते
असल परीक्षा शेष अभी है
मिलें मृत्यु से हंसते गाते !
हर शब्द दिल को छूते लगे
जवाब देंहटाएंकई मूल्यवान सीख मिले
very nice .
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश !
जवाब देंहटाएंविभा जी, शिखा जी और प्रतिभा जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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