रास रचाएं संग वनमाली
चलो झटक दें
हर वह पीड़ा
जो उससे
मिलने में बाधक,
सभी कामना अर्पण कर दें
बन जाएँ
अर्जुन से साधक !
चलो उगा दें
चाँद प्रीत का
उससे ही करें
प्रतिस्पर्धा,
या फिर
अंजुरी भर-भर दें दें
भीतर उमग
रही जो श्रद्धा !
चलो गिरा दें
सभी आवरण
गोपी से हो
जाएँ खाली,
उर के भेद
सब ही खोल दें
रास रचाएं संग वनमाली !
बहुत सुन्दर भक्ति और आध्यात्म का संगम !
जवाब देंहटाएंnew post ग्रीष्म ऋतू !
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_28.html
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भक्ति भाव से ओत-प्रोत..
जवाब देंहटाएंवाह, उत्कृष्ट।
जवाब देंहटाएंजब मैं था तब हरि नही , अब हरि हैं मैं नाहि । भक्ति की पराकाष्ठा इसी भाव में है ।
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों बाद आना हुआ इसके लिए माफ़ी चाहूँगा । बहुत बढ़िया लगी पोस्ट |
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंरविकर जी, कालीप्रसाद जी, रश्मि प्रभा जी, वाणभट जी, माहेश्वरी जी, इमरान, गिरिजा जी, आशा जी व ओंकार जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंजबरदस्त.....क्या बात है!!
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