जिन्दगी
खुद से खुद की पहचान हो गयी
जिन्दगी सुबह की अजान हो गयी
जिनको पड़ोसियों से भी गुरेज हुआ करता था
सारे जहान से जान-पहचान हो गयी
आंसुओं से भीगा रहता था दामन
हर अदा अब उनकी मुस्कान हो गयी
दिलोजां लुटे जाते हैं जमाने पर
दिल से हर शिकायत अनजान हो गयी
फासले खुद से थे हर दर्द का सबब
सुलह खुदबखुद सबके दरम्यान हो गयी
जबसे परचा हो गया सब मिट गया गुमान!
जवाब देंहटाएंवाह ! वाह !
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआज 28/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
वाह.... खुद से खुद की पहचान हो गई ....सुंदर भाव
जवाब देंहटाएं