पास आकर दूर जाये
तितलियाँ जो उड़ रही हैं 
गंध पीतीं रस समोती, 
रंगे जिसने पर सजीले 
उस अलख के गीत गातीं !
मौन ही होता मुखर 
संग पवन जब डोलती हैं,
नृत्य झलके हर अदा में 
शान से पर तोलती हैं ! 
हैं अनोखी कलाकृतियाँ 
चमचमाते रंग धारे,
सूर्य रश्मि छू रही ज्यों 
चित्र कोई कर उकेरे !
रंग बदलें धूप-छाहीं 
पारदर्शी पंख भी हैं,
जाने किसकी राह देखें 
लाल बुंदकी से सजी हैं !
लाल बुंदकी से सजी हैं !
पंख रक्तिम हैं किसी के
पीतवर्णी धारियां भी,
श्याम, नीले पर किसी के
श्वेत बूँदें तारिका सी ! 
हैं हजारों रूप सुंदर 
रंग भी लाखों किसिम के,
बैंगनी, नीली, सजीली 
पर गुलाबी हैं किसी के !
श्वेत वर्णी भी सुहाए
पास आकर दूर जाये,
बैठ जाती पर समेटे
पुष्प का आसन बनाये ! 
शोख रंगीं छटा जिनकी 
ज्यों रंगोली हो सजी,
रंग घुले हैं इस अदा से 
होड़ हो ज्यों पुष्प से ही !
विविध हैं आकार अनुपम
लघु काया है लुभाती,
मन उड़े जाता उन्हीं संग 
प्रीत उनसे बंध लजाती !
कला उसकी राज खोले
मूक है जो कुछ न बोले,
तितलियों, फूलों के चर्चे 
उपवनों में गीत घोलें !
आँख जैसे हो परों पर
देखती हों सब नजारे,
घूमती पुष्पों के ऊपर
नजर उनकी ज्यों उतारें !

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सारगर्भित रचना बधाई
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सुनील जी...
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