बुधवार, सितंबर 9

...नजरें जिसे ढूंढें



यूँ तो इस जहान में हजार फर्ज हैं
दिल दीवाना एक ही धुन गुन रहा कब से

होंगे हजारों मंजर नजरें जिसे ढूँढे
दिल के मकां में छुप गया खामोश वह जब से

नाता उसी की खातिर दुनिया से निभाया
दिल को जंचा है दिलनशीं वह हसीं अब से

थमती नहीं निगाहें लगता नहीं ये दिल
जहनेजिगर में सूरतेजां बस गयी तब से 

5 टिप्‍पणियां:

  1. दिल के मकां में छुप गया खामोश वह जब से...

    बहुत बढ़िया लिखा है अनीता जी. शायद ऐसा ही होता होगा.

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  2. स्वागत व आभार रचना जी..शायद क्यों..ऐसा ही तो होता है

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  3. ख़ुशी की वजह भी तो वही है
    और होने न होने की भी।
    बहुत सुंदर रचना।

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