घर का पता
भूल गये हैं अपने घर का पता
और पूछना भी नहीं चाहते
ऐसा नहीं कि शर्माते हैं
कोई अपना घर भी है
यह भी नहीं जानते
भटकते इधर-उधर
पड़ावों में रातें बिताते
याद ही नहीं आती घर की
खानाबदोश की तरह
कंधों पर उठाये रहते हैं तम्बू
और रातों को तारे गिनते
नींद में कुनमुनाते !
बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
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