कोई सुन रहा है
सुन सके न गर जमाना कोई सुन रहा है
बिखरे हुए लफ्जों को वही चुन रहा है
दीवाना दिल सजीले जो ख्वाब बुन रहा है
पर्दानशीं वही तो दिनरात गुन रहा है
बिसरी हुई यादों को यदि कोई धुन रहा है
अनजान दरम्यां वह दीवार चुन रहा है
चाहत नहीं है उसकी न कोई पुन रहा है
हसरत में मन वही तो दिनरात भुन रहा है
अनजान दरम्यां वह दीवार चुन रहा है
चाहत नहीं है उसकी न कोई पुन रहा है
हसरत में मन वही तो दिनरात भुन रहा है
ये सच है ऊर्जा रहती है किसी न किसी रूप में ... शब्द तो रह जाते हैं भ्रम्हांड में ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार दिगम्बर जी..!
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