हर भारतवासी देश भक्त है
हर फूल अनोखा है बगिया में
निज रंग और गंध लुटाता हुआ अपने तरीके से
हर पंछी गाता है अपनी ही धुन में
प्यार का इजहार भी करता है
तो हर कोईअपनी तरह से
अपनी माँ को पुकारने का हर बच्चे का
निजी तरीका है
कोई नहीं कह सकता
यही एक मात्र सलीका है
विभिन्नता में एकता देख लेते हैं हम
अद्वैत की हवा में जीते आये हैं हम
उस भारत में क्यों आज दिल तंग हुए
बेवजह ही अपनों से हम रंज हुए
निज मत रखने का है हर किसी को अधिकार
मेल-मोहब्बत ही है भारत के भारत होने का आधार !
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जमशेद जी टाटा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंस्वागत व बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सुशील जी !
हटाएंभारत भूमि विशाल है ... सब को समाहित करती है ...
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