जीवन कैसे अर्थवान हो
इस जीवन का मर्म
सिखाने
खुद को खुद से जो
मिलवाये,
कर प्रज्वलित अंतर
उजास
आत्मकुसुम अनगिनत
खिलाये !
माँ बनकर जो सदा
साथ है
स्नेह भरा इक
स्पर्श पिता का,
अपनों से भी अपना
प्रियजन
समाधान दे हर
सुख-दुःख का !
जीवन कैसे
अर्थवान हो
सेवा के नव द्वार
खोलता,
हर पल मन कैसे
मुस्काए
सुंदर मनहर सूत्र
बोलता !
सृष्टि के संग एक
हुआ जो
परम सत्य का रूप
बना है,
अंतरयामी, हर दिल वासी
जग जिसके हित इक
सपना है !
सारे जग को मीत
बनाया
सहज आत्मा से जुड़
जाता,
करे न भेद जाति,
भाषा का
नयनों से ही हाल
जानता !
परम मौन ही नित
संगी है
छिपे हैं जिसमें
राज हजार,
सद्गुरु युग-युग
में आता है
भर अंतर में करुणा
अपार !
१३ मई को गुरूजी का जन्मदिन है
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