सोमवार, जुलाई 30

शब्दों से ले चले मौन में


शब्दों से ले चले मौन में


माटी का तन ज्योति परम है
सद्गुरु रब की याद दिलाता,
है अखंड वह परम निरंजन
तोषण का बादल बरसाता !

खुद को जिसने जान लिया है
गीत एक ही जो गाता है,
एक तत्व में स्थिति हर क्षण 
अंतर प्रेम जहाँ झरता है !

शब्दों से ले चले मौन में
परिधि से सदा केंद्र की ओर,
गति से निर्गति में ले जाए
मिले नहीं कभी जिसका छोर !

परम आत्म का स्मरण दिलाता
सहज मूल की ओर ले चले,
सच से जो पहचान कराए
भेंट करा दे उस प्रियतम से !

इक से जिसने नाता जोड़ा
एक हुआ उसका अंतर मन,
अपने लिए नहीं जीता वह
जग हित उसका पावन जीवन !

मिटे सभी भय मीत बना जग
खाली हुआ हृदय घट उसका,
बांट रहा दोनों हाथों से
घटता नहीं रंच भर जिसका !

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गोविन्द चन्द्र पाण्डे और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !

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  3. बाँट रहा जो दोनों हाथ से ...
    सच है बांटने वाले का घड़ा खाली नहीं होता ... वो इश्वर की प्रकृति से जुडा होता है ...
    परम सत्य और परम आत्मा से सद्गुरु ही पहचान कराता है ... उसकी कृपा बनी रहे तो जीवन का मूल मन्त्र भ मिल जाता है ...

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