उसको खबर सभी की
खोया नहीं है कोई भटका नहीं
है राह
अपने ही घर में बैठा बस
घूमने की चाह
जो दूर से भी दूर और पास से
भी पास
ऐसा कोई अनोखा करता है दिल
में वास
उसको खबर सभी की जागे वह हर
घड़ी
कोई रहे या जाये बाँधे नहीं
कड़ी
इक राज आसमां सा खुलता ही
जा रहा
वह खुद ही बना छलिया खुद को
सता रहा
नजरों से जो बिखरता उसका ही
नूर है
कहता दीवाना दिल वह कितना
दूर है
कोई फूल फूल जाकर मधुरस
बटोरता है
मीठी सी इक डली बन वह राह
जोहता है
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/05/2019 की बुलेटिन, " माउंट एवरेस्ट पर मानव विजय की ६६ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.5.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3351 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार !
हटाएंकौन है वह....
जवाब देंहटाएंउसका कोई नाम नहीं..
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजो दूर से भी दूर और पास से भी पास
जवाब देंहटाएंऐसा कोई अनोखा करता है दिल में वास
सुंदर रचना