दिहाड़ी मजदूर
सिर पर छोटी से इक गठरी रखे
जिसमें दो जोड़ी कपड़े भी न समाएं
वही है कुल जमा पूंजी उनकी
तेज धूप में तपती सड़क पर
चले पड़े हैं वे अपने घर की ओर
जो एक दो नहीं, दूर है सैकड़ों मील
दूसरे शहर में... नहीं, दूसरे राज्य में
दिहाड़ी मजदूर के सिर पर छत नहीं है
जिसने न जाने कितनी अट्टालिकाएं खड़ी कर दीं
उनके पास रहने को ठिकाना नहीं
जो दूसरों के लिए आशियाना सजाते हैं
जीवट से भरे, कोरोना के मारे ये मजदूर
अपनी राह खुद बनाते हैं !
बहुत सही।
जवाब देंहटाएंकोरोना से बचिए।
अपने और अपनों के लिए घर में ही रहिए।
स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएं