राह देखे कोई भीतर
प्रेम भीतर पल रहा है
व्यर्थ ही मन उहापोह में,
लगा रहकर रातदिन यूँ
स्वयं को ही छल रहा है !
झाँक लेते आँख में भी
शब्द को ही सत्य माना,
डबडबाते आँसुओं में
कोई बीता पल रहा है !
दौड़ मन की थमे जब तक
कोई भीतर राह देखे,
हो पहेली या.. सवाल
पास उसके हल रहा है !
प्रेम की इक धार बनकर
मन अगर खुद से मिलेगा,
सोंधी सी फुहार छुए
जो अभी तक जल रहा है !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, होली की आपको व आपके परिवार को बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शालिनी जी !
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं12 मार्च २०२० को साप्ताहिक अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
प्रेम भीतर पल रहा है
जवाब देंहटाएंव्यर्थ ही मन उहापोह में,
लगा रहकर रातदिन यूँ
स्वयं को ही छल रहा है !
सुंदर रचना अनिता जी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
व्यर्थ ही मन उहापोह में,
जवाब देंहटाएंलगा रहकर रातदिन यूँ
स्वयं को ही छल रहा है !
.............सुंदर रचना
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब सृजन...
सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंप्रेम ही आधार है जीवन का ...