सार सार को गहि रहे
‘साधना’ में छुपी है धन की परिभाषा
धन वही है जो पार लगाए
वह नहीं जो रखा रह जाये
जो सारयुक्त है
वही धन है
उसे ही साधना है
हंस की तरह जो विवेक धरे
उस मन में जगती भावना है
भावना जो भर देती है शांति और प्रेम से
जो आनंद की लहर उठाती है
व्यर्थ जब हट जाता है प्रस्तर से
तो सुंदर मूरत उभर आती है
क्यों हम व्यर्थ ही दुःख के भागी बनें
कंकड़ों-पत्थरों के रागी बनें
जब एक हीरा सामने जगमगाता है
तब क्यों सूना दिल कसमसाता है
मुद्दे की बात ‘एक’ ही है
जिसका जिक्र किताबों में है
शेष सब तो उसी की व्याख्या है
इस ‘एक’ का जो ध्यान लगाता है दिल में
जाग जाती उसकी प्रज्ञा है !
सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण किया है आपने।