अनगाया यदि रहा गीत
अनगाया यदि रहा गीत जो
गाने आये थे हम भू पर,
खिला नहीं यदि सरसिज उर में
मिले नहीं उड़ने को दो पर !
मधुऋतु अगर न मन में उतरी
फूटी नहीं हृदय की गागर,
सूना रहा घाट उर सर का
मन्दिर के द्वारे तक जाकर !
अंतर में यदि नहीं लालसा
चाह नहीं यदि जगी मिलन की,
कैसे कारागार खुलेगा
कैसे गूँजेंगे अनहद स्वर !
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3736
जवाब देंहटाएंमें दिया गया है। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंइस अनहद माद को सुन सकें तो जीवन में स्वर लहरी और ताल इश्वर के डमरू से मिल जाए ... शयद इसी लिए हम भी आए हैं सृजित हो कर ...
वाह ! कितनी सुंदर प्रतिक्रिया, नमन !
हटाएंबहुत सुंदर रचना आदरणीया
जवाब देंहटाएंरचना पसंद आई अनीता जी
जवाब देंहटाएंअनहद स्वर यदि सुनाई दे गए तो जीवन आंनद में डूब जाता है
जवाब देंहटाएंसुन्दर काव्य