योग तभी घटता जीवन में
टुकड़ा-टुकड़ा मन बिखरा जो
जुड़ जाता जब हुआ समर्पित
योग तभी घटता जीवन में
सुख-दुःख दोनों होते अर्पित !
योगारुढ़ हो युद्ध करो तुम
कहा कृष्ण ने था अर्जुन को,
जीवन भी जब युद्ध बना हो
योगी हर मानव क्यों ना हो ?
योगी का मन एक शिला सा
दुई में जीता है संसार,
मंजिल एक, एक ही रस्ता
लेकर जाए योग भव पार !
देह की हर वेदना जाने
मन के स्पंदन को भी पढ़ता,
योगी कुशल कर्म में होकर
हुआ साक्षी निज में रहता !
नित्य-अनित्य का संज्ञान है
सुख के पीछे दुःख को लख ले,
मैत्री, करुणा, मुदिता आदि
अंतर के कण-कण में भर ले !
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-6-2020 ) को "अन्तर्राष्टीय योग दिवस और पितृदिवस को समर्पित " (चर्चा अंक-3741) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
टुकड़ा-टुकड़ा मन बिखरा जो
जवाब देंहटाएंजुड़ जाता जब हुआ समर्पित
योग तभी घटता जीवन में
सुख-दुःख दोनों होते अर्पित !
अहा अति सुंदर !!! योग और योग की परिभाषा को बखूबी लिखा आपने अनीता जी
|योगी कुशल कर्म में होकर
हुआ साक्षी निज में रहता !
क्या खूब लिखा आपने | सादर
योग और आयुर्वेद हर मर्ज की दवा है
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