योगी
प्रमाद की नींद पर
कभी सुदिन खड़ा नहीं होता
यह सही है, जब जाग जाए मन
तभी उसके लिए सवेरा होता !
वे विलग हैं,अनोखे हैं
स्वार्थ उन्हें नहीं चलाता
उनकी ऊर्जा का स्रोत अहंकार से नहीं
परमात्मा से है आता !
भय से भाग खड़े हों
या क्रोध से करें सामना
यह सामान्य जन करते होंगे
विपदा आने पर,
वे योगारूढ़ हो
शांत मन से करते हैं मुकाबला
भीतर ठहर कर !
न लाभ की चिंता है उन्हें
लोभ नहीं डुलाता
निमित्त बने हैं किसी के, कर्ता वही है
उसका काम करना भाता !
ध्यान और समर्पण की गंगा
जहाँ दिन-रात बहती है,
जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति के पीछे
तुरीया स्वतः ही रहस्य खोल देती है !
अँधेरे में जग जल रहा हो
जब अज्ञान के हाथों
ज्ञान की आँख ही उसको
बचा सकती है !
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3743 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वे विलग हैं,अनोखे हैं
जवाब देंहटाएंस्वार्थ उन्हें नहीं चलाता
उनकी ऊर्जा का स्रोत अहंकार से नहीं
परमात्मा से है आता !
वाह अनिता जी , योगी को बहुत ही सुंदर ढंग से परिभाषित किया आपने |
कदाचित, ये वही दिव्य आत्माएं हैं जो ईश्वर से सीधा संवाद करती हैं | इतनी भावपूर्ण रचना जो बहुत ही सराहनीय है , के लिए आभार और शुभकामनाएं|
सही कहा है आपने रेणु जी, आपकी भी अध्यात्म में गहरी रूचि है ऐसा प्रतीत होता है,सुंदर प्रतिक्रिया के लिए स्वागत व आभार !
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