श्रद्धा सुमन
एक ही शक्ति एक ही भक्ति
एक ही मुक्ति एक ही युक्ति
एक सिवा नहीं दूजा कोई
एकै जाने परम सुख होई
तुझ एक से ही सब उपजा है
यह जानकर हमें पहले तृप्त होना है भीतर
फिर द्वैत के जगत में आ
आँख भर जगत को देखना है
हर घटना के पीछे तू ही है
हर व्यक्ति के पीछे तेरी अभिव्यक्ति
हर वस्तु की गहराई में तेरी ही सत्ता है
यह जानकर झर जाती हैं
कामनाएं हृदय वृक्ष से
सूखे पत्तों की तरह
और फूटने लगती हैं नव कोंपलें
श्रद्धा का पुष्प खिलता है
नेह का पराग झरता है
अनुराग की सुवास उड़ती है
जो जरूर पहुँचती होगी तुझ तक !
तृप्त होना है भीतर से
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक पंक्तियाँ !
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