वासन्ती प्रभात
जन्म और मृत्यु के मध्य
बाँध लेते हैं हम कुछ बंधन
जो खींचते हैं पुनः इस भू पर
भूमिपुत्र बनकर न जाने कितनी बार बंधे हैं
अब पंच तत्वों के घेरे से बाहर निकलना है
पहले निर्मल जल सा बहाना है मन को
फिर अग्नि में तपना है
होकर पवन के साथ एकाकार
घुल जाना है निरभ्र आकाश में
फिर आकाश से भी परे
उस परम आलोक में जगना है
जहां कभी दिन होता न रात
सदा ही रहता है वासन्ती प्रभात
जहाँ द्रष्टा और दर्शन में भेद नहीं
जहाँ दर्शन और दृश्य में अभेद है
आनंद के उस लोक में
जहां आलोक बसता है
वाणी का उदय होता है
मौन के उस अनंत साम्राज्य में
जहाँ चेतना निःशंक विचरती है
अहर्निश कोई नाम धुन गूँजती है
शायद वही कृष्ण का परम धाम है
जहाँ मन को मिलता विश्राम है !
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 25-04-2021) को
"धुआँ धुआँ सा आसमाँ क्यूँ है" (चर्चा अंक- 4047) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
कृपया शुक्रवार के स्थान पर रविवार पढ़े । धन्यवाद.
हटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी !
हटाएंनश्वर संसार में आराम किसी को नहीं मिलता कभी
जवाब देंहटाएंपरम धाम ही एकमात्र आराम का घर है, लेकिन समय रहते समझ कहाँ पाते हैं हम
बहुत सुन्दर
अभी ही तो समय है, स्वागत व आभार कविता जी !
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने उससे मिलने पर ही मन को विश्राम मिलना संभव है अन्यथा बस इस जीवन यात्रा पर अनवरत चलते ही जाना है।
जवाब देंहटाएंवाकई इस यात्रा का कोई अंत नहीं, स्वागत व आभार !
हटाएंमन के विश्राम को कृष्णधाम से अच्छा भला और क्या हो सकता है ...वाह अनीता जी..मौन के उस अनंत साम्राज्य में
जवाब देंहटाएंजहाँ चेतना निःशंक विचरती है
अहर्निश कोई नाम धुन गूँजती है
शायद वही कृष्ण का परम धाम है..क्या खूब लिखा
स्वागत है अलकनन्दा जी !
हटाएंअब पंच तत्वों के घेरे से बाहर निकलना है
जवाब देंहटाएंपहले निर्मल जल सा बहाना है मन को
फिर अग्नि में तपना है
होकर पवन के साथ एकाकार
घुल जाना है निरभ्र आकाश में
फिर आकाश से भी परे
उस परम आलोक में जगना है
जहां कभी दिन होता न रात
सदा ही रहता है वासन्ती प्रभात
वही सत्य है और वही हमारा सफर एवं मंजिल भी परन्तु हम तो यही राह में ही अटकते भटकते रह जाते हैं जन्मों जन्मों तक..।
विश्राम की चाह में भी यहीं विश्राम करके बस इसी असार संसार को सार समझ बैठते हैं।
काश हम कृष्ण धाम की ओर निरंतर बढ़ें और मन को अनंत विश्राम दें...।
यदि भीतर ऐसी कामना जगी है तो अवश्य ही पूरी होगी, स्वागत है सुधा जी !
हटाएंये भी तो विश्राम का धाम है जहाँ सच में बहुत ही शांति मिलती है । आपको हार्दिक आभार मन को उसकी झलक दिखलाने के लिए ।
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम अमृता जी !
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