पूजा पूजा के लिए
जब साधन भी हो पूजा साध्य भी
वही फल है जीवन वृक्ष का
जब आपा कहीं पीछे छूट जाए
तब जीवन पथ पर ‘कोई’
नया उजाला बिखेर जाता है !
जब अंतर तृप्त होकर छलक जाए
हर उस घड़ी में वह अनाम ही
हमसे अभिसिक्त हुआ जाता है !
यदि अश्रु करुणा, प्रेम या कृतज्ञता के
छलके कभी नयनों से
चढ़ जाते वे स्वतः शिव मन्दिर में
पूजा जब सहज घटती है
तभी साधना सफल होती है
जब उसी की पूजा कर
रिझा कर उसे ही पाया जाता है
तब जीवन से कुछ नहीं पाना
जीवन का ही उत्सव मनाया जाता है
अपना होना ही जब
उसके होने का प्रमाण बन जाये
तब जीवन हर घड़ी एक वरदान बन जाता है !
शब्द-शब्द में अनमोल जीवन-दर्शन बिखरा हुआ है । आभार एवं अभिनंदन अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार जितेंद्र जी !
हटाएंअपना होना ही जब
जवाब देंहटाएंउसके होने का प्रमाण बन जाये
तब जीवन हर घड़ी एक वरदान बन जाता है...अति सुंदर कथ्य, संपूर्णता प्रदान करती सुंदर अनुभूति की अभिव्यक्ति ।
कविता के मर्म तक पहुँच कर सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार जिज्ञासा जी !
हटाएंस्वागत व आभार !
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