ज्यों धूप और पानी
दिल में लरजता जो है
रग-रग में कम्प भरता,
वह भिगो रहा अहर्निश
जो लौ को ओट देता !
सम्भालता सदा है
पल भर न साथ छोड़े,
वह जिंदगी का मानी
धड़कन वही है तन में !
बरसता वही हर सूं
वह चाँद बन चमकता,
गर ढूंढना उसे चाहें
कोई पता ना देता !
ऐसे वह बंट रहा है
ज्यों धूप और पानी,
छुपा नहीं कहीं भी
नजर आये न हैरानी !
महसूस करे कोई
एक पल भी न बिसरता,
जिसे पाके कुछ न चाहा
वैसा न कोई दूजा !
गर मिल गया किसी को
कुछ और न वह मांगे,
उसके ही संग सोये
संग सुबह रोज जागे !
उसे क्या कोई कहेगा
वह शून्य है या पूरा,
हर होश वह भुला दे
कोई जान न सकेगा !
उसे भूलना न सम्भव
अनोखा निगेहबां हैं,
मधुरिम वह स्वप्न देता
हर दिल में आ बसा है !
आपकी कविता गूढ़ है। मर्म समझने की कोशिश कर रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंकाव्य को समझने की जरूरत नहीं है, महसूस कर लीजिए
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंविचारों का अच्छा सम्प्रेषण किया है
आपने इस रचना में।
स्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर सृजन। ।।।।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाही है जो अद्रश्य है पर सब जगह व्याप्त है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर, भावपूर्ण दार्शन लिए ...
स्वागत व आभार !
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