ध्यान
जब हम बोलते हैं
भीतर या बाहर
तो दूसरा रहता है
जब चुप रहते हैं
तो कोई दूसरा नहीं होता
एक हो जाती है सारी कायनात
जब घटता है मौन
भीतर या बाहर
फिर जहाँ न राग रह जाता है न द्वेष
न सुख और न ही दुःख
जहाँ खुद से मिलना होता है
और मृत्यु का भय भी खो जाता है
उस मौन को पा लेना ही ध्यान है
यही स्रोत है जीवन का
शायद यहीं रहते भगवान हैं !
काश इस मौन की गहराई तक पहुंच पाएँ ।
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति
आमीन !
हटाएंमौन की इस अभिव्यक्ति को सुन पाना इतना आसान नहीं होता ... मौन ही रहना होता उसे सुन पाने के लिए भी ... सुन्दर भावपूर्ण रचना है ...
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं आप, आभार !
हटाएंसुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंध्यानं शरणं गच्छामि । अति सुन्दर भाव ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अमृता जी !
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन...
जवाब देंहटाएंमौन की गहराई में पहुंचना भी दुर्गम है परन्तु जहां चाह वहां राह....उत्तम रचना।
जवाब देंहटाएंअनुराधा जी, संदीप जी व उर्मिला जी स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरे भाव..सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर