जैसे कोई द्वार खुला हो
भीतर-बाहर सभी दिशा में
बरस रहा वह झर-झर-झर-झर,
पुलक उठाता होश जगाता
भरता अनुपम जोश निरंतर !
जैसे कोई द्वार खुला हो
आज अमी की वर्षा होती,
आमन्त्रण दे मुक्त गगन भी
धार सहज ही रहे भिगोती !
रंचमात्र भी भेद नहीं है
जल से जल ज्यों मिल जाता है,
फूट गयीं दीवारें घट की
दौड़ा सागर भर जाता है !
मेघपुंज बन कभी उड़े मन
कभी हवा सँग नृत्य कर रहा,
पीपल की ऊँची फुनगी पर
खगों के सुर में सुर भर रहा !
कभी दिशाएं हुईं सुवासित
सुख सौरभ चहुँ ओर बिखरता,
धूप रेशमी उतरी नभ से
जल कण से तृण कोर निखरता !
तन का पोर-पोर कम्पित है
गूँज इस ब्रह्मांड की सुनता,
उर बौराया चकित हुआ सा
देख-देख नव सपने बुनता !
सुवासित सुरभित रचना!!बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत मनभावन रचना ।
जवाब देंहटाएंदिल्ली में बारिश नहीं हो रही । इसी को पढ़ कर एहसास जगा रहे ।
मानसून अब दूर नहीं है, झमझमाझम वर्षा के लिए तैयार रहिए, आभार!
हटाएंबहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंअलौकिक !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी!
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंभाव विभोर कर गई शब्दों का ताना-बाना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
कभी दिशाएं हुईं सुवासित
जवाब देंहटाएंसुख सौरभ चहुँ ओर बिखरता,
धूप रेशमी उतरी नभ से
जल कण से तृण कोर निखरता !
वर्षा के आगमन से , मन की ख़ुशी घुलमिल जाए तो यही सब होना तय है | सुंदर , अभिनव रचना अनीता जी |
अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएं