मंगलवार, जनवरी 4

अब लौट मुझे घर आना है

अब लौट मुझे घर आना है 

हर भाव तुझे अर्पित मेरा 

हर सुख-दुःख भी तुझसे संभव, 

यह ज्ञान और अज्ञान सभी 

तुझ एक से प्रकटा है यह भव !


तू बुला रहा हर आहट में 

हर चिंता औ' घबराहट में, 

तूने थामा है हाथ सदा 

आतुरता नहीं बुलाहट में !


हो स्वीकार निमंत्रण तेरा

तेरे आश्रय में सदा रहूँ, 

अब लौट मुझे घर आना है 

तुझ बिन किससे यह व्यथा कहूँ !


‘​​मैं’ तुझसे मिलने जब जाता 

मौन मौन में घुलता जाये, 

जिसकी गूंज अति प्यारी है 

कोई मनहर राग गुंजाये !


‘मैं’ खुद को कभी लख न पाता

मौन हुआ जब मिलने जाए, 

शब्द हैं सीमित मौन असीम 

वही मौन ‘तू’ को झलकाए !


नदिया ज्यों नदिया से मिलती 

सागर में जा खो जाती है, 

‘मैं’ ‘तू’ में सहज विलीन हुआ  

कोई खबर नहीं आती है !


2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-01-2022) को चर्चा मंच      "नसीहत कचोटती है"   (चर्चा अंक-4300)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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