अनायास ही
अनंत की उड़ान भर रहा
मन का पंछी अनायास ही
कृपा का बादल बरस रहा हो
जैसे नभ से बिन प्रयास ही
कोई अद्भुत खेल चल रहा
शांति बिछी है पग-पग ऐसी
उग जाती ज्यों दूब धरा पर
पावस ऋतु में बिन आयास ही
जैसे कोई द्वार खुला हो
अंतर गह्वर से खिसका हो
कोई पाहन
बह निकली हो धार प्रेम की
कल-कल छल-छल अनायास ही
अथवा नील गगन में उड़ता
राजहंस हो
निर्मल धवल शिखर को छूकर
पा लेता हो तृप्ति अनोखी
या फिर कोई हाथ पकड़ कर
ले जाता हो
निज आश्रय में बिन प्रयास ही !
क्या बात है, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंया फिर कोई हाथ पकड़ कर
जवाब देंहटाएंले जाता हो
निज आश्रय में बिन प्रयास ही !
ईश्वर की कृपा का बोध हुआ जैसे ,बहुत सुंदर !!
सुंदर भावपूर्ण रचना ....... ईश्वर से निकटता का अहसास ।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-6-22) को "सफर चल रहा है अनजाना" (चर्चा अंक-4459) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
हटाएंअनंत की उड़ान ... उसके आशीर्वाद और संकल्प का ही प्रमाण होता है ... इसी के आश्रय में सबको जाना होता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअंतरिक भावों का सम्मोहित करता वर्णन ।
जवाब देंहटाएंनिश्छल मन ही सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंउन्मुक्त उङान से नापा सारा आकाश !
जवाब देंहटाएंशब्द चित्र ने अनुभव करा दिया ।
अनुपमा जी, संगीता जी, दिगम्बर जी, ओंकार जी, जिज्ञासा जी, कुसुम जी व नुपुरं जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण रचना ..
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