मंगलवार, अक्तूबर 18

भाव सधे तो प्रेम खिलेगा



भाव सधे तो प्रेम खिलेगा 

जितना दौड़ो कम पड़ता है
यह जग अंधा एक कुआँ है,
कभी तृप्त  कब हो सकता यह
सदा अधूरा ही मिलता है !

दो पल थम कर खुद सँग हो ले
जिसने पाया, भीतर पाया,
नहीं छोड़ना कुछ भी बाहर
जिसको तृष्णा तजना आया !

कर-कर के भी जो ना मिलता
शांत हुए से सहज मिलेगा,
कुछ भी नहीं शांति के आगे
भाव सधे तो प्रेम खिलेगा !

जीवन का यही महा रहस्य
जिसने छोड़ा उसने पाया,
सहज रहा जो जैसा भी है
उसने साथ स्वयं का पाया !

मानव होने का आशय क्या
निज के भीतर खुद को पाना,
तोड़ के मन, बुद्धि के घेरे
आत्म शक्ति से प्रीत लगाना !

2 टिप्‍पणियां:


  1. मानव होने का आशय क्या
    निज के भीतर खुद को पाना,
    तोड़ के मन, बुद्धि के घेरे
    आत्म शक्ति से प्रीत लगाना !
    बहुत सुंदर।

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