उजियारा मन बाती कारण
देह दीप माटी का जैसे
उजियारा मन बाती कारण,
स्नेह प्राण का, ज्योति आत्म की
जग को किया उसी ने धारण !
दीपक छोटे, बड़े क़ीमती
मन भी भिन्न क्षमता की बात,
प्राणों में बल घटता-बढ़ता
किंतु ज्योति है एक दिन-रात !
उसी ज्योति की ओर चले थे
ऋषि ने जब तमसो गाया था,
वही ज्योति शुभ मार्ग दिखाती
महाजनों को जो भाया था !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (29-12-2022) को "वाणी का संधान" (चर्चा अंक-4630) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!
हटाएंवाह, सहजता से कहा सार, बधाई
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजी, सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएं...आपो ज्योति रसो अमृतम् !...
जवाब देंहटाएंसादर अभिनन्दन ! उत्तम भाव !
जय श्री कृष्ण जी !
जय श्री कृष्ण जी!
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