चिड़िया और आदमी
चिड़िया भोर में जगती है
उड़ती है, दाना खोजती है
दिन भर फुदकती है
शाम हुए नीड़ में आकर सो जाती है
दूसरे दिन फिर वही क्रम
नीले आसमान का उसे भान नहीं
हरे पेड़ों का उसे भान नहीं
हवाओं,सूरज, धूप का उसे भान नहीं
परमात्मा का उसे भान नहीं
पर वह मस्त है अपने में ही मग्न
और उधर आदमी
उठता है चिंता करता है
चिंता में काम करता है
चिंता में भोजन खाता है
चिंता में ही सो जाता है
उसे भी नीला आकाश दिखायी नहीं देता
हज़ार नेमतें दिखाई नहीं देतीं
परिजन व आसपास के लोग दिखाई नहीं देते
बस स्वार्थ सिद्धि में लगा रहता है
तब आदमी चिड़िया से भी छोटा लगता है
आदरणीया अनीता जी बहुत ही सुंदर रचना बहुत ही सटीक तुलना की है आपने
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-12-22} को "दरक रहे हैं शैल"(चर्चा अंक 4625) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंसत्य और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंआदमी होकर भी क्या किया सिर्फ चिंता।
जवाब देंहटाएंसही कहा आदमी चिड़िया से भी छोटा...
बहुत सार्थक सृजन ।
मीना जी, अभिलाषा जी व सुधा जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 19 दिसंबर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत बहुत आभार संगीता जी!
हटाएंवैसे तो आदमी हर प्राणी से छोटा ही है जब से उसने अपना स्वार्थ सबसे ऊँचा कर लिया है ... काश इंसान अपने स्थान को समझे ...
जवाब देंहटाएं