आनंदित है कण-कण जड़ का
निशदिन मेघ प्रीत का तेरी
बरस रहा है झर-झर झर-झर,
ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ
दसों दिशाओं से नित आकर !
जिस पल बनी पदार्थ ऊर्जा
नवल सृष्टि का जन्म हुआ था,
रूप अनंत धरे जाती है
मानो कोई खेल चल रहा !
आनंदित है कण-कण जड़ का
चेतन इसमें छिपा हुआ है,
कुदरत का सौंदर्य अनूठा
मधुरिम लय में बँधा हुआ है
अंतर्मन में गुँथे हुए ज्यों
श्रद्धा, प्रेम आस्था के स्वर,
तू ही हमें राह दिखलाता
खोज निकालें इनको भीतर !
सुख दे खुद के निकट बुलाए
दुःख दे उर में विरह जगाए,
सहज बने कैसे यह जीवन
पल-पल इसका मार्ग दिखाए !
कैसे करें शुक्रिया तेरा
तुझसे ही अस्तित्त्व टिका है,
शांति, प्रेम, सुख सागर बनता
जो दिल तेरे लिए बिका है !
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंअति सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार उर्मिला जी!
हटाएंलाजबाब सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मनोज जी!
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