रविवार, अप्रैल 16

पलकों में है बंद ख़्वाब इक


पलकों में है बंद ख़्वाब इक 


झर-झर झरता बादल नभ से 

सम्मुख दरिया भी बहता है,

सब कुछ पाकर भी इस दिल का 

प्याला ख़ाली ही रहता है !


जाने किसको ढूँढ रही हैं 

 दिवस-रात्रि स्वप्निल दो आँखें  

जाने कैसे बिगड़ी जातीं  

 बनते-बनते सारी बातें ! 


हर सुख पाया है इस जग का

फिर भी इक कंटक  चुभता है, 

पलकों में है बंद ख़्वाब इक 

अक्सर ही आकर तकता है ! 


पूर्ण नहीं होती यह कैसी 

प्यास जगी है अंतर्मन में, 

जीवन सूना-सूना लगता 

थिरता कब  आयी जीवन में !


कसक न दिल की दूर हुई है 

 कैसे होगी यह भान नहीं, 

सुख-सुविधा के अंबार लगे  

ख़ुद का ही नर को ज्ञान नहीं ! 


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 17 एप्रिल 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. गहन और भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति

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    1. स्वागत व आभार ओंकार जी, आपकी सतत उपस्थिति प्रशंसनीय है

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