शनिवार, जुलाई 8

जीवन जो गतिमान निरंतर



जीवन जो गतिमान निरंतर 


रोकें नहीं ऊर्जा भीतर

पल-पल बहती रहे जगत में,

त्वरा झलकती हो कृत्यों से

पाँव रुकें नहीं थक मार्ग में !


नित रिक्त हों हरसिंगार सम

पुनः-पुनः मंगल ज्योति झरे,

रुकी ऊर्जा बन पाहन सी  

सर्जन नहीं  विनाश ही करे !


धारा थम कर बनी ताल इक  

बहती रहती जुड़ी स्रोत से,

जीवन जो गतिमान निरंतर 

दूर कहाँ है वह मंजिल से!


कृत्यों की ऊर्जा बहायें

भीतर खले न कोई अभाव,

भरता ही जाता है आँचल 

जिस पल माँगा मुक्ति का भाव  !


लुटा रहा है सारा अम्बर 

हम भी दोनों हाथ उलीचें,

क्षण-क्षण में जी स्वर्ग बना लें 

बँधी हुई मुठ्ठी न भींचें !


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 09 जुलाई 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. सकारात्मक भावों को सहेजे प्रेरक प्रस्तुति प्रिय अनीता जी।प्रकृति हमें पग- पग पर सदा ही उदार और ऊर्जावान रहने का संदेश देती है।🙏

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    1. आपने सही कहा है, प्रकृति हमें हर पल आगे बढ़ाने का इशारा करती है। स्वागत व आभार रेणु जी !

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