शिकायत ख़ुद से भी अनजान हुई
खुद से खुद की जब पहचान हुई
ज़िंदगी फ़ज़्र की ज्यों अजान हुई
जिन्हें गुरेज था चंद मुलाक़ातों से
गहरी हरेक से जान-पहचान हुई
तर था दामन अश्रुओं से जिनका
मोहक अदा सहज मुस्कान हुई
दिलोजां लुटाते हैं अब जमाने पर
शिकायत ख़ुद से भी अनजान हुई
फासले ही हर दर्द का सबब बनते
मिटी दूरी सुलह सबके दरम्यान हुई
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 25अक्टूबर 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम
बहुत बहुत आभार पम्मी जी !
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआज तो एक खूबसूरत गजल हो गई ... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंजी, शुक्रिया !
हटाएंअत्यन्त सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंकितनी प्यारी गजल!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया !
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