शनिवार, अक्तूबर 7

हल्का हो मन उड़े

हल्का हो मन उड़े


यादों की गठरी ले 

तन-मन ये चलते हैं, 

कल का ही जोड़ आज 

 संग लिए फिरते हैं !


कोई तो उतारे बोझ

हल्का हो मन उड़े, 

एक बार बिना भार 

ख़ुद से फिर आ जुड़े !


असलियत जान वह 

राज यही खोलेगा, 

प्रियतम है साथ सदा 

बात हर तोलेगा !


10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 08 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
  2. मन स्वयं से जुड़ जाए तो बात ही क्या ...

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!बहुत खूबसूरत सृजन...अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. गहरी बात ...अनीता जी... कोई तो उतारे बोझ

    हल्का हो मन उड़े,

    एक बार बिना भार

    ख़ुद से फिर आ जुड़े !...एकदम सत्य

    जवाब देंहटाएं
  5. कोई तो उतारे बोझ

    हल्का हो मन उड़े,

    एक बार बिना भार

    ख़ुद से फिर आ जुड़े !
    अच्छी बुरी यादों के बोझ तले दबें हैं ।
    खुद से मिलने का अवसर ही कहाँ
    बहुत ही लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं
  6. आप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार ! आज ऐसा लग रहा है जैसे वे पुराने दिन लौट आये हैं, आप सभी का आगमन ब्लॉग जगत के लिए एक शुभ संकेत है

    जवाब देंहटाएं