मंगलवार, अक्तूबर 17

अबकी बार नवरात्रों में

अबकी बार नवरात्रों में 


तंद्रा, प्रमाद सताते हैं 

देह को अथवा मन को  

आत्मा सदा ही सचेतन है !

पर जैसे काली हो जाये चिमनी

 तो प्रकाश नहीं आता 

प्रमादी हो जाये देह या मन तो 

आनंद आत्मा का बाहर नहीं आता !

देह-दीपक जब साफ़ नहीं रहता 

तो मन-स्नेह कैसे भरा जाएगा उसमें 

देह दीपक में स्नेहिल मन हो 

तभी न आत्मा की ज्योति जगमगायेगी 

और देख वह जोत, अबकी बार 

नवरात्रों में माँ हमारे घर आएगी 

योग से देह-दीपक सजाना है 

ध्यान से मन-स्नेह जलाना है 

तब प्रकटेगी वह अखंड ज्योति 

जो अभी सोयी है 

अंधकार में भटक रोयी है !


8 टिप्‍पणियां:

  1. नवरात्रों में माँ हमारे घर आएगी
    योग से देह-दीपक सजाना है
    ध्यान से मन-स्नेह जलाना है
    तब प्रकटेगी वह अखंड ज्योति
    जो अभी सोयी है
    अंधकार में भटक रोयी है !
    ... बहुत सही ..... जय माता दी।

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  2. बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना सखी
    "योग से देह दीपक सजाना है
    ध्यान से मन स्नेह जगाना है "

    संपूर्ण जीवन सार निहित है इन पंक्तियों में

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