विजयादशमी
माँ को पूज कर राम ने
पाया विजय का वरदान,
किया विनाश दशानन का
मिला दुनिया में सम्मान !
राम तभी अवतार बने
जिस पल निज शीश झुकाया,
विधिपूर्वक करी प्रार्थना
अहम् भाव पूर्ण मिटाया !
सीता से फिर हुआ मिलन
दोनों के सब कष्ट मिटे,
सेना में जय घोष उठा
अंधकार के मेघ छँटे !
हम निज अल्प प्राप्ति पर भी
गर्वित हों कब शोभा दे,
माँ की शक्ति से ही सदा
तन-मन का अस्तित्व रहे !
वही करावन हारा है
उसी को सौंपें हर भार
हल्के हो जगत में रहें
यदि करना स्वयं उद्धार !
शीश नमन कर के ही कुछ प्राप्त होता है ... विजयदशमी की बधाई ...
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने, आपको भी बधाई
हटाएंवही करावन हारा है
जवाब देंहटाएंउसी को सौंपें हर भार
हल्के हो जगत में रहें
यदि करना स्वयं उद्धार !
बिलकुल सच लिखा है, सम्मान विनम्रता से ही मिलता है।अहंकार से पतन निश्चित है। बहुत बधाई disi।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी !
हटाएंवाह! सुंदर ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंशानदार कविता...वाह... क्या आपको पता है कि चर्चामंच क्यों अपडेअ नहीं हो रहा
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अलकनंदा जी ! जी, नहीं पता, शायद आयोजकों का यही निर्णय रहा हो
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