मंगलवार, सितंबर 10

बहा करे संवाद की धार

बहा करे संवाद की धार 

टूट गई वह डोर, बँधे थे 

जिसमें मन के मनके सारे, 

बिखर गये कई छोर, अति हैं  

प्यारे से ये रिश्ते सारे !


गिरा धरा पर पेड़ प्रीत का 

नीड़ सजे जिस पर थे सुंदर, 

 शाखा छोड़  उड़े सब पंछी

आयी थी ऐसी एक सहर !


 अब उनकी यादों का सुंदर 

चाहे तो इक कमल खिला लें, 

मिलजुल कर आपस में हम सब 

 मधुर गीत कुछ नये बना लें !


बहा करे संवाद की धार 

चुप्पी सबके दिल को खलती, 

जुड़े हुए हैं मनके अब भी 

चाहे डोरी नज़र न आती !


कभी कोई प्रियजन सदा के लिए विदा ले लेता है तो परिवार में एक शून्यता सी छा जाती है।

इसी भाव को व्यक्त करने का प्रयास इस रचना में किया गया है।


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 11 सितंबर 2024 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

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  2. सच है। परिवार ऐसे समय पर इकठ्ठा होता है तो समझ आता है, जो झगड़े थे, वे सतही थे। जो प्रेम है, वह गहरा है। सतही मसलों के कारण आपसी प्रेम को नहीं बिगाड़ना चाहिए।

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    1. कितनी सही बात कही है आपने, ऐसे वक्त में सबके दिल मिले रहें तो दुख हल्का हो जाता है, स्वागत व आभार !

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