यायावर का गीत
जग चलता है अपनी राह
उसने लीक छोड़ दी है,
है मंजूर अकेले रहना
हर जंजीर तोड़ दी है !
सदियों घुट-घुट जीता आया
माया के बंधन में बंधकर,
अब न दाल गलेगी उसकी
रार ठनेगी उससे जमकर !
कितनी सीमायें बांधी थी
जब पहचान नहीं थी निज से,
कितने भय पाले थे उर में
जब अंजान रहा था उस से !
कैसे कोई रोके उसको
दरिया जो निकला है घर से,
सागर ही उसकी मंजिल अब
बाँध न कोई भी गति रोके !
bahut sundar...
जवाब देंहटाएंवह आत्म तत्व जिसने पहचान लिया है उसका रास्ता कभी नष्ट नहीं होता वह भगवान की ओर ही जाता है। जब तक इच्छा है तब तक संसार है जो जैसा है वह वैसा ही ठीक है उसे बदलने में समय न गवाओं खुद तबाह हो जाओगे अपनी सोचो। बढ़िया पोस्ट आत्म बोध कराती ,
जवाब देंहटाएंबोध जगाती रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मन के भाव ..
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