नयन वातायन बने
कोष भीतर हो छिपाए
तृषित क्यों फिरते जहाँ में,
पूर्ण होकर क्यों अधूरे
गीत रचते इम्तहां में !
नजर से मिश्री लुटाओ
फूल सी मुस्कान भर कर,
बोल कोकिल कूक जैसे
जिंदगी में प्राण भर कर !
चैन बाँटो दोस्ती दो
अनुराग झलके हर घड़ी,
दूत बनके शांति का तुम
दो जोड़ हर टूटी कड़ी !
तुम बहो जग को बहाओ
उर यह महासागर बने,
पुलक बन इक कौंध जाओ
दो नयन वातायन बनें !
अनिता निहालानी
३१ जुलाई २०१०
कोष भीतर हो छिपाए
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पूर्ण होकर क्यों अधूरे
गीत रचते इम्तहां में I
दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई