कृष्ण जन्माष्टमी
बुद्धि हमारी देवकी मानस है वसुदेव
दोनों का शुभ मिलन बने आनंद का गेह !
तन यह कारागार है अहंकार है कंस
पंचेंद्रियाँ पहरा दें भीतर बंदी हंस !
पहरेदार सोए इन्द्रियाँ हुईं उपराम
मन बुद्धि में लीन हुआ भीतर प्रकटे श्याम !
आसक्ति कालिंदी है जाना गोकुल धाम
छूटे मन का राग तो मिल जाय घनश्याम !
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